परमपिता परमेश्वर से विनती है कि; आपके जीवन में सुख, समृद्धि, धन, यश प्रदान करें और आपके जीवन को सुंदर और सुखमय बनाए।
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥
– श्रीमद्भगवद
गीता (४: १४)
भावार्थ : कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म
लिप्त नहीं करते- इस प्रकार जो मुझे तत्व से जान लेता है, वह
भी कर्मों से नहीं बँधता॥
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